मैथिली शरण गुप्त की प्रसिद्ध कविता Famous poem of Maithili Sharan Gupta


मैथिली शरण गुप्त की प्रसिद्ध कविता Famous poem of Maithili Sharan Gupta

शुरुआत से अंत तक जरूर पढ़े। Famous poem of Maithili Sharan Gupta

मैथिली शरण गुप्त की कविता “सावित्री” में सावित्री के पात्र का विस्तार से विश्लेषण

मैथिली शरण गुप्त हिंदी साहित्य के महान कवियों में से एक थे, जिन्होंने भारतीय समाज, संस्कृति, और नारी के अधिकारों पर गहरी दृष्टि से विचार किया। उनकी काव्य रचनाएँ सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में गहरी व्याख्या प्रदान करती हैं। उनकी कविता “सावित्री” विशेष रूप से नारी के आदर्श रूप और उसकी सहनशीलता, साहस, और कर्तव्यनिष्ठा को उजागर करती है।

यह कविता महाभारत के प्रसंग “सावित्री और सत्यवान” से प्रेरित है, जिसमें सावित्री ने अपने पति सत्यवान की मृत्यु के बाद यमराज से उनकी जान वापस प्राप्त करने के लिए अद्वितीय साहस और बुद्धिमता का परिचय दिया था। गुप्त जी ने इस काव्य में सावित्री के इस महान कार्य को न केवल एक धार्मिक कृति के रूप में प्रस्तुत किया है, बल्कि इसे नारी शक्ति और नारी धर्म के रूप में भी प्रस्तुत किया है।

सावित्री का पात्र

1. साहस और आत्मविश्वास की प्रतीक

सावित्री की सबसे बड़ी विशेषता उसकी साहसिकता और आत्मविश्वास है। जब यमराज सत्यवान की आत्मा को लेकर जाने आते हैं, तब सावित्री न केवल निराश नहीं होती, बल्कि उसने यमराज से अपने पति की जान वापस लाने के लिए संघर्ष किया। वह अपने साहस और संकल्प से यमराज को भी पराजित करती है। गुप्त जी ने सावित्री को एक ऐसी नारी के रूप में प्रस्तुत किया है जो अपनी पूरी शक्ति और बुद्धि का उपयोग करती है, न केवल संकटों का सामना करने के लिए, बल्कि उन्हें पार करने के लिए भी। यह चित्रण नारी के भीतर छुपी शक्ति को उजागर करता है।

2. कर्तव्यनिष्ठा और पतिव्रता धर्म

सावित्री अपने पतिव्रता धर्म के प्रति पूरी तरह समर्पित है। जब उसके पति सत्यवान की मृत्यु हो जाती है, तो वह इस सदमे से टूटती नहीं है। बल्कि वह अपनी पतिव्रता धर्म को निभाते हुए सत्यवान के साथ यमराज के साथ चर्चा करने जाती है। वह अपने पति की जान वापस लाने के लिए हर संभव प्रयास करती है, जो उसके कर्तव्य का प्रतीक है। इस चित्रण से यह संदेश मिलता है कि एक आदर्श नारी का जीवन उसके कर्तव्यों और धर्म के प्रति पूर्ण समर्पण का होता है।

3. मानसिक शक्ति और ज्ञान

सावित्री की बुद्धिमत्ता और मानसिक शक्ति भी उसके पात्र का महत्वपूर्ण पहलू है। जब यमराज उसे सत्यवान की जान वापस देने के लिए चुनौती देते हैं, तब सावित्री अपने वचन और कर्तव्य का पालन करते हुए एक सशक्त संवाद करती है। वह न केवल यमराज से अपनी बात मनवाती है, बल्कि वह यह भी सिद्ध करती है कि बुद्धि और विवेक से ही संसार के सबसे बड़े संकट को हल किया जा सकता है। गुप्त जी ने इस चित्रण के माध्यम से यह संकेत दिया है कि नारी का असली बल उसकी बुद्धिमत्ता और मानसिक शक्ति में है, न कि केवल शारीरिक ताकत में।

4. नारी के आत्मसम्मान और स्वाभिमान का प्रतीक

सावित्री का पात्र न केवल पतिव्रता के रूप में आदर्श प्रस्तुत करता है, बल्कि वह नारी के आत्मसम्मान और स्वाभिमान की भी प्रतीक है। वह यमराज से एक क्षण के लिए भी अपने सम्मान से समझौता नहीं करती। वह स्पष्ट रूप से कहती है कि यमराज से केवल सत्यवान का प्राण ही नहीं, बल्कि वह भी अपने साथ ले जाएगी। यह उसकी आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और साहस का प्रतीक है। कविता के इस पहलू से यह संदेश मिलता है कि नारी को अपनी शक्ति और आत्मसम्मान को कभी भी समझौता नहीं करना चाहिए।

5. नारी के लिए आदर्श रूप

गुप्त जी ने सावित्री के पात्र के माध्यम से नारी के आदर्श रूप को चित्रित किया है। वह नारी के सहनशीलता, साहस, समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा का आदर्श प्रस्तुत करती हैं। कविता में सावित्री एक ऐसी नारी का चित्रण करती हैं, जो परिवार के लिए अपने जीवन की आहुति देने के लिए तैयार रहती है। यह नारी के त्याग, समर्पण और बलिदान का प्रतीक है, जो हर समाज में महिलाओं के आदर्श रूप के रूप में देखा जाता है।

निष्कर्ष

“सावित्री” की कविता न केवल एक ऐतिहासिक और धार्मिक कथा का चित्रण करती है, बल्कि यह नारी के आदर्श रूप को स्थापित करती है। सावित्री का पात्र नारी की धैर्य, साहस, समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक बनकर उभरता है। मैथिली शरण गुप्त ने इस कविता में नारी की मानसिक शक्ति और आध्यात्मिक दृष्टिकोण को भी महत्व दिया है। इस तरह, सावित्री का पात्र सिर्फ धार्मिक कथा की नायिका नहीं, बल्कि वह हर उस महिला के लिए एक प्रेरणा स्रोत है, जो जीवन के कठिन दौर में अपने कर्तव्यों का पालन करती है। गुप्त जी ने नारी के सामाजिक और धार्मिक महत्व को दिखाते हुए उसे एक सशक्त और प्रेरणादायक रूप में प्रस्तुत किया है।


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