अभिज्ञान शाकुंतलम कालिदास द्वारा रचित संस्कृत साहित्य

अभिज्ञान शाकुंतलम कालिदास द्वारा रचित संस्कृत साहित्य की सबसे प्रसिद्ध नाट्यकृति है। यह राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम गाथा पर आधारित एक उत्कृष्ट महाकाव्य है। इसमें प्रेम, वियोग, और पुनर्मिलन के मार्मिक क्षणों को अद्भुत काव्य शैली में प्रस्तुत किया गया है।

कथा का सारांश

प्रथम अंक- प्रेम का आरंभ
राजा दुष्यंत, हस्तिनापुर के प्रतापी सम्राट, वन में शिकार करने के दौरान महर्षि कण्व के आश्रम में पहुँचते हैं। वहाँ उनकी मुलाकात शकुंतला से होती है, जो महर्षि कण्व की दत्तक पुत्री और अप्सरा मेनका व ऋषि विश्वामित्र की पुत्री है। शकुंतला की सुंदरता से प्रभावित होकर दुष्यंत उससे प्रेम कर बैठते हैं। दोनों गंधर्व विवाह (एक प्रकार का प्रेम विवाह) करते हैं। राजा दुष्यंत आश्रम से लौटते समय शकुंतला को अपनी अंगूठी देते हैं और वादा करते हैं कि वे शीघ्र ही उसे अपने साथ राजमहल ले जाएंगे।

द्वितीय अंक- वियोग और शाप
एक दिन महर्षि दुर्वासा आश्रम में आते हैं। शकुंतला, दुष्यंत के प्रेम में खोई हुई, उनका उचित सत्कार नहीं कर पाती। इससे क्रोधित होकर दुर्वासा उसे शाप देते हैं कि जिसे वह इतना याद कर रही है (दुष्यंत), वह उसे भूल जाएगा। जब अन्य ऋषि महर्षि दुर्वासा को शांत करते हैं, तो वे शाप का प्रतिकार करते हुए कहते हैं कि दुष्यंत तब शकुंतला को याद करेगा जब वह उसे कोई निशानी दिखाएगी।

तृतीय अंक- वियोग की त्रासदी
शकुंतला गर्भवती हो जाती है और महर्षि कण्व के आदेश पर राजा दुष्यंत के राजमहल जाती है। लेकिन दुर्वासा के शाप के कारण दुष्यंत उसे पहचानने से इनकार कर देते हैं। दुर्भाग्यवश, शकुंतला के पास दुष्यंत की दी हुई अंगूठी भी नहीं होती क्योंकि वह एक नदी में गिर चुकी होती है। दुखी होकर शकुंतला वन में चली जाती है।

चतुर्थ अंक- पुनर्मिलन
कुछ समय बाद, एक मछुआरे को राजा की अंगूठी मिलती है। अंगूठी देखकर राजा दुष्यंत को शकुंतला और अपने विवाह की याद आ जाती है। वे उसे ढूँढने निकलते हैं।

वन में, दुष्यंत को अपने पुत्र भरत के बारे में पता चलता है, जो एक शेर के मुँह खोलने का प्रयास कर रहा होता है। दुष्यंत अपनी पत्नी शकुंतला और पुत्र भरत को पहचान लेते हैं, और परिवार का पुनर्मिलन होता है।

इस कथा के प्रमुख पात्र
1. दुष्यंत – हस्तिनापुर के राजा, जो वीर, शक्तिशाली और न्यायप्रिय हैं।
2. शकुंतला – महर्षि कण्व की दत्तक पुत्री, सुंदर, सौम्य, और प्रेम में निष्ठावान।
3. महर्षि दुर्वासा – अपने क्रोध और शाप के लिए प्रसिद्ध।
4. भरत – दुष्यंत और शकुंतला का पुत्र, जो भविष्य में चक्रवर्ती सम्राट बनता है।

कहानी से जुड़े प्रश्न और उत्तर – अभिज्ञान शाकुंतलम कालिदास द्वारा रचित संस्कृत साहित्य

प्रश्न 1- राजा दुष्यंत और शकुंतला की पहली मुलाकात कहाँ हुई थी?
उत्तर- राजा दुष्यंत और शकुंतला की पहली मुलाकात महर्षि कण्व के आश्रम में हुई थी।

प्रश्न 2- महर्षि दुर्वासा ने शकुंतला को किस बात का शाप दिया?
उत्तर- महर्षि दुर्वासा ने शकुंतला को शाप दिया कि जिसे वह याद कर रही है (राजा दुष्यंत), वह उसे भूल जाएगा।

प्रश्न 3- राजा दुष्यंत को शकुंतला की याद कब आई?
उत्तर- राजा दुष्यंत को शकुंतला की याद तब आई जब मछुआरे को नदी से उनकी अंगूठी मिली और वह अंगूठी राजा को वापस दी गई।

प्रश्न 4- राजा दुष्यंत और शकुंतला का पुनर्मिलन कैसे हुआ?
उत्तर- राजा दुष्यंत ने वन में अपने पुत्र भरत को देखा, जिसने उन्हें शकुंतला तक पहुँचाया। वहाँ उन्होंने शकुंतला और भरत को पहचानकर पुनर्मिलन किया।

प्रश्न 5- इस कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर- इस कहानी का मुख्य संदेश यह है कि प्रेम और विश्वास में बाधाएँ आ सकती हैं, लेकिन सच्चा प्रेम हमेशा विजयी होता है।

कथा की विशेषताएँ
1. प्रकृति का चित्रण- कालिदास ने इस नाटक में आश्रम, वन, और प्राकृतिक सौंदर्य का उत्कृष्ट वर्णन किया है।
2. शाप और प्रतीक- कथा में दुर्वासा का शाप और अंगूठी जैसे प्रतीक गहरी नाटकीयता उत्पन्न करते हैं।
3. सार्वभौमिक प्रेम- राजा और शकुंतला का प्रेम विभिन्न कठिनाइयों के बाद भी अमर रहता है।

यह प्रेम कथा भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर है और सच्चे प्रेम, त्याग और पुनर्मिलन की प्रेरणा देती है।

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